रामायण सीता स्वयम्वर की अद्भुत कहानी| Amazing story of Ramayana Sita Swayamvar in hindi

रामायण में भगवान राम और माता सीता के जीवन के बारे में बताया गया है कि कैसे ये दोनों सामान्य मनुष्य के रूप में जन्म लेने के बावजूद आज भी अपने असाधारण व्यक्तित्व से मानव जीवन को प्रेरणा दे रहे हैं। आज हम आपको सीता स्वयंवर की कहानी बताने जा रहे हैं कि दोनों को कैसे भाग्य मिलता है और भगवान राम सीता माता को क्या वचन देते हैं? तो जुड़े रहिए हमारे साथ.

माता सीता का जन्मस्थान

माता सीता राजा जनक की पुत्री थीं। दरअसल, माता सीता का जन्म धरती माता से हुआ था, इसी लिए इन्हें भूमि के नाम से भी जाना जाता है। माँ सीता का जीवन सामान्य नहीं था। वह बचपन से ही कई असाधारण काम करती रहती थी, जिसमें शिव के धनुष से खेलना भी शामिल है, जिसे कई महान महारथी हिला भी नहीं सकते थे। इस शिव धनुष का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने संसार की रक्षा के लिए किया था, जिसे भगवान शिव ने भगवान परशुराम को दे दिया था। इस धनुष से परशुराम ने कई बार भूमि की रक्षा की और अंततः इसे राजा जनक के दादा देवराज के संरक्षण में रख दिया।

सीता जी के असाधारण कार्य को देखते हुए राजा जनक को एहसास हुआ कि ये कोई साधारण कन्या नहीं है। ये कोई दिव्य आत्मा है. इसी लिए सीता जी के बाल्ये काल में ही ये विचार बना लिया कि वे सीता जी का विवाह किसी साधारण मनुष्य से नहीं करेंगे। सीता जी के लिए दिव्य पुरुष की खोज के लिए वे बड़े चिंतित रहते थे इस वजह से उन्हें ने फेसला किया कि वे सीता जी का विवाह *स्वयंवर का आयोजन करेंगे, जिसमे यह शर्त रखी जाएगी, कि जो धनुर्धारी शिव के इस महान दिव्य धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ायेगा, वो ही सीता के योग्य समझा जायेगा.

*(स्वयम्वर का अर्थ यह होता था, कि इसमें कन्या स्वयम अपनी इच्छानुसार अपने लिये पति का चुनाव कर सकती थी.)

शर्त के अनुसार सभी राज्यों के राजाओ को स्वयम्बर का निमंत्रण दे दिया गया. यह निमंत्रण अयोध्या भी जाता हैं, लेकिन अयोध्या के राज कुमार राम गुरु वशिष्ठ के साथ वन में रहते हैं और वहीँ से एक सभा दर्शक के तौर पर स्वयम्बर का हिस्सा बनते हैं.

प्रतियोगिता शुरू होती हैं कई बड़े-बड़े राजा उठकर आते हैं, लेकिन शिव के उस दिव्य धनुष को हिला भी नहीं पाते. यहाँ तक की इस स्वयम्बर में रावण भी हिस्सा लेते हैं और धनुष को हिला भी नहीं पाते.

राजा दशरथ अत्यंत दुखी हो जाते हैं ये सब देख कर और दुखी हृदय से कहते हैं इस वीरो से भरी सभा में मेरी पुत्री के लिए कोई भी योग्य वीर नहीं है। क्या सीता कुंवारी ही रह जाएगी क्योंकि जिस धनुष को वो खेल-खेल में उठा लेती थी, उसे आज इस सभा में कोई हिला भी नहीं पा रहा है।

जनक के द्वार कहे गये शब्दों से लक्ष्मण क्रोधित हो जाते हैं और श्री राम जी से आग्रह करते हैं कि वो स्वयं ही इस स्वयम्वर हिसा ले और धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाये। परन्तु राम जी ये कहते हुए इंकार कर देते हैं कि वो सिर्फ एक दर्शक है। परन्तु राजा जनक के करुण वचन सुन कर गुरु वशिष्ठ राम जी को आज्ञा देते हैं स्वयम्वर में शामिल होने के लिए।

गुरु जी की आज्ञा से राम जी अपनी जगह से उठ जाते हैं, फिर धनुष को प्रणाम करते हुए एक ही झटके से उसे उठाते हैं, उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने के लिये धनुष को मोड़ते हैं। लेकिन टूटकर दो हिस्सों में गिर जाता हैं। इस प्रकार स्वयम्वर की शर्त पूरी होती है। सभी उन पर पुष्पो की वर्षा करते हैं। आसमान से देवी देवता भी पुष्प बरसाते हैं। सीता जी श्री राम के गले में वरमाला डाल कर उनका वरण करती हैं  और मिथिला में जश्न का आरम्भ होता हैं, लेकिन धनुष के टूटने का आभास जैसे ही भगवान परशुराम को होता हैं।

वे क्रोध से भर जाते हैं और मिथिला की उस सभा में आ पहुँचते हैं, उनके क्रोध से धरती कम्पित होने लगती हैं, लेकिन जैसी श्री राम ने भगवान परशुराम के चरण स्पर्श कर क्षमा मांगते हैं . भगवान परशुराम समझ जाते हैं, कि वास्तव में राम एक साधारण मनुष्य नहीं, अपितु भगवान विष्णु का अवतार हैं और वे अपने क्रोध को खत्म कर सिया राम को आशीर्वाद देते हैं।

भगवान राम और देवी सीता के विवाह के साथ ही राजा जनक अपनी एक और बेटी उर्मिला और अपने भाइयों की बेटियों (माधवी और सुतकीर्ति) का विवाह भी राम जी के भाईयों लक्ष्मण के साथ, भारत और शत्रुघ्न के साथ उसी मंडप में करते हैं। इस प्रकार चारो बहने एक साथ अयोध्या में प्रवेश करती है।

विवाह की पहली रात जब राम जी अपने कक्ष में आते हैं तो वे देवी सीता को चिंतित पाते हैं और उनसे इस चिंतन का कारण पूछते हैं जिस पर देवी सीता कहती हैं कि आप तो राजा हैं और राजा की तो बहुत सारी रनिया होती हैं तो आप भी जब दूसरा विवाह करेंगे तो आप मुझे भूल जायेंगे। ईसा सुरु राम जी सीता मैया को वचन देते हैं कि माई आ जीवन किसी दूसरी स्त्री से कोई संबंध नहीं बनाऊंगा याई शब्द देवी सीता भगवान राम जी के बहुत से सुन कर स्तब्ध रह जाती है।

आगे चल कर जब देवी सीता और राम जी किसी कारण से अलग हो जाते हैं तब भी भगवान राम दूसरा विवाह नहीं करते हैं और देवी सीता को दिए हुए वचन का अजीवन पालन करते हैं। इसके लिए उन्हें मर्यादापुरुषोत्तम राम के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है।

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Purnima
पूर्णिमा U&I की की एडिटर हैं इनकी रूचि हिंदी भाषा में हैं। यह U&I के लिए बहुत से विषयों पर लिखती हैं। इन्हें हमारे दर्शकों का बहुत प्यार और स्नेह मिलता है और इनके प्रयासों से हम निरंतर आगे बढ़ रहे हैं।

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